Kavita Jha

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आत्महत्या एक डरावनी प्रेम कहानी # लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -09-Sep-2022

भाग -6
सिद्धार्थ दीपा की यादों से निकल साधना को लेकर घर पहुंचता है । जहां उसकी माँ अपनी नव वधु का स्वागत करती है मंगलगीत के साथ उसे पूजा घर में ले जाया जाता है।उसके साथ दीपा की आत्मा भी हर कदम उसका पीछा करते हुए चल रही है।एक रस्म के दौरान पानी के बर्तन में हाथ डालने पर देखिए क्या होता है साधना के साथ।
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बिहार और बंगाल में मछली को बड़ा शुभ माना जाता है। नव वधु के आशिर्वाद और गृह प्रवेश पर होती रस्मों में से एक रस्म यह भी है कि जब नव वधु को घर लाते हैं तो सबसे पहले पूजा घर में प्रणाम करा एक पानी के बर्तन में रखी मछली को उसे निकालने के लिए कहा जाता है जो ज्यादा तर मरी हुई और छोटी सी ही होती है। फिर एक हाथ से सिलवट्टे पर हल्दी पीसती है और मछली को हाँसू (एक प्रकार का सब्जी काटने वाला चाकू) से काट कर उस पर हल्दी लगाती है।

साधना यह सारी रस्में जानती थी उसने अपने भईया की शादी के बाद भाभी को इन रस्मों को पूरा करते देखा था। उसे मछली पकड़ने का भी शौक बचपन से ही था।जब भी वो गांव जाती तो भाई के साथ तलाब पर अपनी बंसी (मछली पकड़ने का डंडा) लेकर बैठ जाती।वो मछली का चारा बनाती और तलाब में डालती रहती। उसे मछली खाना पसंद नहीं था पर मछली को देखना और उन्हें पकड़ना बहुत अच्छा लगता था।
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जैसे ही साधना ने पानी के बर्तन में हाथ डाला एक विशालकाय मछली इतनी तेजी से उसके ऊपर झपटी कि वो वहीं पानी के बर्तन में गिर पड़ी। मछली उसे अपना शिकार बनाने में तुली थी। दृश्य बहुत ही भयावह था जिसे देख सभी डर के मारे चीखते चिल्लाते हुए भागने लगे।

सब हैरान थे ऐसा कैसे हो सकता है एक छोटी सी 20-25 ग्राम की मरी हुई मछली इतनी बड़ी कैसे हो गई और यह जिंदा कैसे हो गई। यह कोई जादू ही हुआ है।सबको अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। 

शीला देवी तो उस मछली को देख कर ही बेहोश हो गई। इतने छोटे से बर्तन से इतनी बड़ी मछली का निकलना ही आश्चर्यजनक बात थी। मछली की आँखे लाल थी और उसकी आँखों से खून टपक रहा था, दाँत बड़े ही नुकीले थे।उसका आकार लगातार बढ़ते ही जा रहा था। 

साधना उसकी गिरफ्त में बुरी तरह फस चुकी थी, जिससे निकलना नामुमकिन था।
मछली के अंदर दीपा की आत्मा बहुत ही भयानक आवाज में बोल रही थी, "तूँ मेरी जगह कभी नहीं ले सकती मेरा सिद्धार्थ सिर्फ मेरा है। भाग जा यहाँ से, वरना तुझे जिंदा चबा जाऊंगी।"

रास्ते भर दीपा ने साधना को डराने की बहुत कोशिश की पर नाकाम रही अपने मकसद में। अब जैसे ही उसने मरी हुई मछली को पानी के बर्तन में देखा बस उसी में घुस गई और साधना के साथ सब को डराने लगी। दीपा की आत्मा चाहती थी कि इस भयावह दृश्य को देखकर सिद्धार्थ के परिवार वाले साधना को अपनाने से इंकार कर देंगे।

साधना के पूरे शरीर पर ख़रोंच आ गई थी उस मछली के नुकीले काँटों से । 

अचानक उसे अपने गले में पहने  हींग राई जो कि पीले कपड़े में बांध कर उसमें सुई लगा कर काले धागे से माला की तरह बना कर  शादी की रस्मों से पहले उसकी मम्मी ने उसके गले में पहना दिया था।

 इसके पीछे मान्यता यह थी कि शादी के दौरान हर तरह के लोग आते हैं, लड़की को सजाया जाता है फिर दूसरे घर जाना होता है। ना जाने किसकी नज़र कैसी हो।बस बुरी नजर से बचाने के लिए ही हींग लहसुन राई अजवायन को पीले कपड़े में बांध कर उसके ऊपर सुई लगा देते हैं। 

साधना ने अपनी माँ की बात याद की, हनुमान जी का स्मरण किया।मन में बंजरग बाण का जाप कऱने लगी तभी उसे खुद में एक शक्ति महसूस हुई और अपने एक हाथ को अपने गले में बंधी उस पोटली तक ले गई, उसमें से सुई निकाल कर मछली की आँख में घुसा दिया । फिर पोटली खोल कर उसमें रखा सभी सामान मछली के ऊपर डाल दिया। दीपा की आत्मा साधना की इन हरकतों से बेचैन हो कर मछली के शरीर से बाहर निकल आई। मछली निर्जीव हो गई और अपने छोटे से आकार में बदल गई।

दीपा उस पोटली के हींग और लहसुन की गंध से परेशान हो बड़बड़ा रही थी ... क्या समझती है खुद को, बहुत बड़ी जादूगर हैं क्या तूं।तेरा सारा जादू उड़न छू ना कर दिया तो मेरा नाम भी दीपा नहीं।
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इधर शीला देवी को बेहोशी की हालत में हस्पताल ले जाया गया।
 डर के मारे सब का गला सूख रहा था।नई बहु की इन रस्मों में ऐसा भी कुछ होगा, इससे सब अनभिज्ञ थे।आज तक ऐसा दृश्य इतनी बड़ी मछली किसी ने देखी ही नहीं थी।

सुबह इस रस्म के लिए मछली का इंतजाम करने के लिए शीला देवी ने अपने छोटे बेटे संजय को कहा था। उसे मछली खाने खिलाने का भी बहुत शौक था। 
शीला जी ने समझाते हुए कहा था," मछली छोटी सी ही लाना, सिर्फ रस्म पूरी करनी है। फिर चार दिन बाद भठफोड़ी ( शादी के बाद चौथे दिन मनाने वाली एक रस्म) वाले दिन तो माछ भात भोज होगा ही, उसमें ढ़ेर सारी मछली लाना। उस दिन तो तुम्हें ही यह रस्म निभानी है।

 संजय ने जब पूछा,"माँ मुझे क्या करना होगा? "
तब शीला जी ने अपने छोटे बेटे को बड़े प्यार से यह पूरी रस्म समझाते हुए कहा,
" नई भाभी के सिर पर एक मटकी होगी जिसमें वो सुबह गोबर से आँगन नीपने के बाद का कीचड़ और गोबर रखेगी। तुम्हें उस मटकी को डंडे से फोड़ना होगा, फिर वो रूठ कर बैठ जाएगी और तुम्हें उसे मनाने के लिए अपनी भाभी को उपहार स्वरूप गहना जेवर या पैसे देने होंगे।"

संजय ने भी कभी कल्पना में भी यह नहीं सोचा था कि उसकी पसंदीदा मछलियांँ कभी ऐसा रूप भी ले सकती है। अब तो उसे मछली के नाम से ही डर लगने लगा था।
क्रमश
आपको यह कहानी पसंद आ रही है यह जानकर खुशी हुई। 
इस कहानी से जुड़े रहने के लिए मेरे प्रिय पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया। आप इसी तरह कहानी से जुड़े रहिए और अपनी समीक्षा के जरिए बताते रहिए कि आपको कहानी कैसी लग रही है। आपसे निवेदन है कि यदि मुझे फॉलो नहीं किया है और मेरी यह कहानी पसंद आ रही है तो मुझे फॉलो कीजिए जिससे आपको कहानी के अगले भाग का नोटिफिकेशन मिल सके और आप अगला पार्ट जल्द से जल्द पढ़ सकें ।
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कविता झा'काव्या कवि'
#लेखनी
##लेखनी नॉन स्टॉप प्रतियोगिता 

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7 Comments

Pallavi

22-Sep-2022 09:38 PM

Beautiful

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Kaushalya Rani

21-Sep-2022 06:19 PM

Beautiful

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Barsha🖤👑

21-Sep-2022 05:35 PM

Nice post

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